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Article : Current Affairs 19 August 2018.
Updated at : Mon, 20 August, 2018 , 11:25:01 AM ( IST )
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19 अगस्त को विश्व मानवीय दिवस मनाया गया


19 अगस्त: विश्व मानवीय दिवस

विश्व भर में 19 अगस्त 2018 को अंतरराष्ट्रीय मानवीय दिवस मनाया गया. यह दिन मानवीय कर्मियों और मानवीय कारणों की वजह से अपनी जान गंवा चुके लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है.

विश्व मानवीय दिवस विश्व में मानवीय कार्यों को प्रेरित करने वाली भावना का जश्न मनाने का भी एक अवसर है. इस दिवस को विश्व भर में मानवीय कार्यों को प्रोत्साहन दिए जाने के अवसर के रूप में भी देखा जाता है.

                                                         उद्देश्य:

विश्व मानवीय दिवस का उद्देश्य उन लोगों की पहचान करना है जो दूसरों की मदद करने में विपरीत परिस्थितियों को सामना कर रहे हैं.

 यह दिन दुनिया भर में मानवीय जरूरतों पर ध्यान आकर्षित करने की मांग करता है और इन जरूरतों को पूरा करने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का महत्व है. हर साल, आपदाओं से लाखों लोगों विशेषतः दुनिया के सबसे गरीब, सबसे हाशिए और कमजोर व्यक्तियों को अपार दुःख का सामना करना पड़ता है.

मानवीय सहायता कर्मी:

मानवीय सहायता कर्मी आपदा प्रभावित समुदायों को राष्ट्रीयता, सामाजिक समूह, धर्म, लिंग, जाति या किसी अन्य कारक के आधार पर भेदभाव के बिना जीवन बचाने में सहायता और दीर्घकालिक पुनर्वास प्रदान करने का प्रयास करते हैं.

मानवीय सहायता मानवता, निष्पक्षता, तटस्थता और स्वतंत्रता सहित कई संस्थापक सिद्धांतों पर आधारित है. मानवीय सहायता कर्मियों का सम्मान किया जाना चाहिए, और महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करने के लिए उन लोगों तक पहुंचने में सक्षम किया जाना चाहिए. वे सभी संस्कृतियों, विचारधाराओं और पृष्ठभूमि को प्रतिबिंबित करते हैं और मानवतावाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से वे एकजुट हो जाते हैं.

पृष्ठभूमि:

इसका निर्माण संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) द्वारा स्वीडिश प्रस्ताव के आधार पर किया. इसके अनुसार किसी आपातकाल स्थिति में संयुक्त राष्ट्र देशों द्वारा आपस में सहायता के लिए मानवीय आधार पर पहल की जा सकती है.

इस दिवस को विशेषरूप से 2003 में संयुक्त राष्ट्र के बगदाद, इराक स्थित मुख्यालय पर हुए हमले की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाना आरंभ किया गया. इस बम विस्फोट में 22 लोगों की जान चली गई. इसमें संयुक्त राष्ट्र के दूत सर्गियो विएरा डी मेल्लो भी थे. यह दिन हर वर्ष 19 अगस्त को मनाया जाता है

आर्कटिक बर्फ पिघलने से भारतीय मॉनसून प्रभावित हो सकता है: अध्ययन


प्रतीकात्मक फोटो

राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीएओआर) के वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोध के अनुसार आर्कटिक की बर्फ के तेज़ी से पिघलने का भारतीय मानसून पर बुरा असर हो सकता है. इस संबंध में राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीएओआर) गोवा, के अनुसंधान पत्र में रिपोर्ट प्रकाशित की गई है.

शोधकर्ता मनीष तिवारी एवं विकास कुमार की अगुवाई में किये गये इस अध्ययन में पाया गया कि इस क्षेत्र में वैश्विक आंकड़ों की तुलना में कहीं अधिक जलवायु परिवर्तन हो रहा है. इसका असर भारतीय मॉनसून पर भी पड़ रहा है.

प्रमुख तथ्य  

•    वैज्ञानिकों ने इस अध्ययन के लिए पिछली दो शताब्दियों में आर्कटिक क्षेत्र में हुए ऊष्मा बदलावों को दोबारा संगठित किया. 

•    वैज्ञानिकों के शोधानुसार ध्रुवीय क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन वैश्विक औसत से दोगुना हो रहा है.

•    वैज्ञानिकों ने पाया कि पिछले दो शताब्दियों में जलवायु परिवर्तन द्वारा संचालित ग्लेशियर पिघलने में वृद्धि हुई है.

•    आर्कटिक क्षेत्र में इन भौगोलिक परिवर्तनों के कारण राज्य और पृथ्वी की जलवायु प्रणाली के संतुलन को महत्वपूर्ण रूप से बदलने का अनुमान जताया गया है.

•    वैज्ञानिकों ने ऑर्गनिक कार्बन और अन्य पदार्थों की उपस्थिति का पता लगाने के लिए आर्कटिक क्षेत्र की तलछटी का अध्ययन किया.

•    आर्कटिक में बढ़ते हिमनद से प्रकाश की उपलब्धता में कमी आई है और इस प्रकार उत्पादकता में कमी आई है जिसके परिणामस्वरूप जैविक कार्बन की कम उपस्थिति होती जा रही है.

•    शोध के परिणामस्वरूप यह पाया गया कि आर्कटिक क्षेत्र में 1840 एवं 1900 को छोड़कर प्रत्येक वर्ष बर्फ पिघलने में बढ़ोतरी जारी रहा है. 

•    आर्कटिक क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन में 1840 के बाद से बर्फ पिघलना आरंभ हुआ तथा इसमें 1970 के बाद से सबसे अधिक तेजी देखी गई.

•    शोधकर्ताओं के अनुसार, बर्फ पिघलने से समुद्र के जल स्तर में हो रहे बदलावों से भारत के मॉनसून में भी बदलाव हो देखे गये हैं, विशेषकर दक्षिण पश्चिम भारत के मॉनसून में इसका अधिक असर देखा गया है.

राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र

राष्ट्रीय अंटार्कटिक एवं समुद्री अनुसंधान केंद्र (एनसीएओआर) ध्रुवीय (आर्कटिकअंटार्कटिक और दक्षिणी महासागर) कार्यक्रम को समन्वित करने और लागू करने वाली केंद्रीय एजेंसी है. भारत में यह एकमात्र ऐसा संस्थान है जिसके पास ध्रुवीय प्रदेशों से हिमखंड के संग्रहण और प्रसंस्करण की क्षमता है. अब तक भारत सफलतापूर्वक अंटार्कटिका के लिए 30 वैज्ञानिक अभियानों और आर्कटिक तथा दक्षिणी महासागर प्रत्येक के लिए पांच अभियानों को प्रारंभ कर चुका है. इसकी स्थापना वर्ष 1998 में की गई थी. 

वर्ष 2010-11 में एनसीएओआर ने दक्षिण ध्रुव के लिए सर्वप्रथम भारतीय अभियान की शुरुआत की थी. अंटार्कटिका में 'मैत्रीके अलावा भारत के पास अब आर्कटिक में अनुसंधान बेस 'हिमाद्रिहै. पूर्वी अंटार्कटिका में नवीन अनुसंधान बेस 'भारतीका निर्माण किया गया है.

यूएन के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान का निधन

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) के पूर्व महासचिव और नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कोफी अन्नान का 18 अगस्त 2018 को निधन हो गया. वे 80 वर्ष के थे. यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र ने ट्विटर हैंडल के जरिए दी. कोफी अन्नान कुछ समय से बीमार थे.

कोफी अन्नान को वैश्विक स्तर पर शांति प्रयासों और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए जाना जाता है. कोफी अन्नान यूएन के महासचिव बनने वाले पहले अश्वेत अफ्रीकी थे.

कोफी अन्नान बुतरस घाली के बाद संयुक्त राष्ट्र के सातवें महासचिव के रूप में अपना योगदान दिया था.

प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाल के लिए काम:

कोफी अन्नान युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में शांति बहाल करने और प्रवासियों को फिर से बसाने के लिए वैश्विक स्तर पर होने वाले कई प्रयासों की अगुआई कर चुके थे. हाल के दिनों में वह रोहिंग्या और सीरिया के शरणार्थी संकट के समाधान के लिए काम कर रहे थे. सीरिया में संकट के समाधान के लिए उन्होंने सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद से भी मुलाकात की थी.

नोबेल शांति पुरस्कार:

कोफी अन्नान को उनके मानवीय कार्यों के लिए वर्ष 2001 में नोबेल शांति पुरस्कार भी मिला था.

कोफी अन्नान:

•    कोफी अन्नान का जन्म 8 अप्रैल 1938 को गोल्ड कोस्ट (वर्तमान देश घाना) के कुमसी नामक शहर में हुआ था.

•    वे वर्ष 1962 से वर्ष 1974 तक और वर्ष 1974 से वर्ष 2006 तक संयुक्त राष्ट्र में कार्यरत रहे.

•    वे 1 जनवरी 1997 से 31 दिसम्बर 2006 तक दो कार्यकालों के लिये संयुक्त राष्ट्र के महासचिव रहे.

•    वे कोफी अन्नान फाउंडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष थे, साथ ही नेल्सन मंडेला द्वारा स्थापित अंतरराष्ट्रीय संगठन 'द एल्डर' के अध्यक्ष थे.

•    कोफी अन्नान ने वर्ष 1954 से वर्ष 1957 तक मफिन्तिस्म स्कूल में शिक्षा ली. वे वर्ष 1957 में फोर्ड फाउंडेशन की दी छात्रावृत्ति पर अमेरिका गये थे.

•    उन्होंने अमेरिका में वर्ष 1958 से वर्ष 1961 तक मिनेसोटा राज्य के संत पॉल शहर में मैकैलेस्टर कॉलेज में अर्थशास्त्र की पढ़ाई की और वर्ष 1961 में उन्हें स्नातक की डिग्री हासिल की.

•    वे अंग्रेजी, फ्रेंच, क्रू, अकान की अन्य बोलियों और अन्य अफ्रीकी भाषाओं के जानकार थे.

•    कोफी अन्नान ने वर्ष 1962 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए एक बजट अधिकारी के रूप में काम शुरू कर दिया था. वे विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ 1965 तक रहे.

•    उन्होंने वर्ष 1965 से 1972 तक इथियोपिया की राजधानी अद्दीस अबाबा में संयुक्त राष्ट्र की इकॉनोमिक कमिशन फॉर अफ्रीका के लिए काम किया था.

•    इसके बाद कोफी अन्नान अगस्त 1972 से मई 1974 तक जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र के लिये प्रशासनिक प्रबंधन अधिकारी के तौर पर रहे.

•    वे मई 1974 से नवंबर 1974 तक मिस्र में शांति अभियान में संयुक्त राष्ट्र द्वारा कार्यरत असैनिक कर्मचारियों के मुख्य अधिकारी (चीफ़ पर्सोनेल ऑफिसर) के पद पर कार्यरत रहे.

•    वे वर्ष 1974 से 1976 तक घाना में पर्यटन के निदेशक के रूप में भी कार्य किए.

•    वे वर्ष 1980 में संयुक्त राष्ट्र के शरणार्थी उच्चायोग के उप-निदेशक नियुक्त हुए. 1984 में वे संयुक्त राष्ट्र के बजट विभाग के अध्यक्ष के रूप में न्यूयॉर्क वापिस आये.

•    उन्हें वर्ष 1987 में संयुक्त राष्ट्र के मानव संसाधन विभाग और वर्ष 1990 में बजट एवं योजना विभाग का सहायक महासचिव नियुक्त किया गया था. वे मार्च 1992 से फ़रवरी 1993 तक शांति अभियानों के सहायक महासचिव रहे थे.

•    उन्हें मार्च 1993 में संयुक्त राष्ट्र का अवर महासचिव नियुक्त किया गया था और वे दिसंबर 1996 तक इस पद पर कार्यरत रहे.

•    उन्होंने वर्ष 1997 में संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न संगठनों में सामंजस्य बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र विकास समूह की स्थापना की.

•    उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में प्रशासनिक एवं वित्तीय सुधार किए, जिसमें सचिवालय का बड़ा प्रशासनिक पुनर्गठन भी शामिल था

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन: सात दिन का राजकीय शोक


भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स में शाम 05 बजकर 05 मिनट पर निधन हो गया. अटल बिहारी वाजपेयी को गुर्दा (किडनी) की नली में संक्रमण, छाती में जकड़न, मूत्रनली में संक्रमण आदि के बाद 11 जून 2018 को एम्स में भर्ती कराया गया था.

एम्‍स से उनका पार्थिव शरीर उनके निवास कृष्‍ण मेनन मार्ग पर लाया गया. यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री का शव उनके निवास स्‍थान पर तिरंगे में लपेटा गया. यहां पर लोगों ने उन्‍हें श्रद्धांजलि अर्पित किया.

पंचतत्व में विलीन:

भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 17 अगस्त 2018 को पंचतत्व में विलीन हो गए. दिल्ली के स्मृति स्थल पर राष्ट्र ने उन्हें नम आंखों से अंतिम विदाई दी. वाजपेयी द्वारा गोद ली गई बेटी नमिता ने उन्हें मुखाग्नि दी. इस दौरान वहां मौजूद सभी लोग हाथ जोड़े खड़े रहे. सभी की आंखों में आंसू थे. वाजपेयी का अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ संपन्न किया गया.

अंतिम संस्कार से पहले स्मृति स्थल पर सेना के तीनों अंगों के प्रमुखों ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सलामी दी. अंतिम यात्रा के दौरान अभूतपूर्व सुरक्षा इंतजाम किए गए थे। करीब 45 हजार जवानों को चप्पे-चप्पे पर तैनात किया गया.

विदेशी नेताओं ने भी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी:

भूटान नरेश जिग्मे खेसर, अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई, बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका के विदेश मंत्रियों समेत कई विदेशी नेताओं ने भी वाजपेयी को श्रद्धांजलि दी.

राजकीय शोक: 
केंद्र सरकार ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया. इस दौरान राष्‍ट्रीय झंडा आधा झुका रहेगा. केंद्र सरकार के कार्यालयों में आधे दिन की छुट्टी रहेगी. इसके साथ उत्‍तर प्रदेश, उत्‍तराखंड, मध्‍यप्रदेश, झारखंड और बिहार ने भी सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया. पंजाब ने तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया.

स्‍कूल कॉलेजों में सार्वजनिक अवकाश:  

उत्‍तर प्रदेश, दिल्‍ली, झारखंड, बिहार, तमिलनाडु, मध्‍यप्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक, उत्‍तराखंड और पंजाब में 17 अगस्त 2018 को स्‍कूल, कॉलेज और सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे. हिमाचल प्रदेश ने दो दिन की छुट्टी ऐलान किया. भारतीय उद्योग व्‍यापार मंडल ने 17 अगस्त 2018 को दिल्‍ली के बाजार बंद करने का निर्णय लिया है. आज छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस रेलवे स्टेशन की लाइट्स बंद रहेंगी.

मधुमेह से पीड़ित वाजपेयी का एक ही गुर्दा काम करता था. हालांकि, इन सबमें डिमेंशिया से भी अटल बिहारी वाजपेयी सबसे ज्यादा पीड़ित थे.

                                डिमेंशिया क्या है?

डिमेंशिया किसी खास बीमारी नहीं, बल्कि एक अवस्था है. डिमेंशिया में इंसान की याददाश्त कमजोर हो जाती है और वह अपने रोजमर्रा के काम भी ठीक से नहीं कर पाता है. डिमेंशिया से पीड़ित लोगों में लघु याददाश्त जैसे लक्षण भी देखने को मिलते हैं. अकसर लोग डिमेंशिया को सिर्फ एक भूलने की बीमारी के नाम से जानते हैं, और सोचते हैं कि यह मुख्यतर याददाश्त की समस्या है. पर डिमेंशिया के अनेक गंभीर और चिंताजनक लक्षण होते हैं. डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति की हालत समय के साथ बिगड़ती जाती है, और सहायता की जरूरत भी बढ़ती जाती है. इसमें मस्तिष्क में हानि भी होती है.

काफी दिनों से बीमार थे वाजपेयी:

आपको बता दें कि वाजपेयी काफी दिनों से बीमार थे. वे लगभग 15 साल पहले राजनीति से संन्यास ले चुके थे.

           अटल बिहारी वाजपेयी एक 'कविभी:

एक राजनीतिज्ञ होने के साथ साथ अटल बिहारी वाजपेयी एक 'कवि' भी रहे और कविताएं उनके हृदय के करीब रहीं. प्रधानमंत्री बन जाने के बाद कविता गोष्ठियों या कवि सम्मेलनों में जाना उनके लिए संभव नहीं था, लेकिन कविता से उनका प्रेम ही है जो वर्ष 2002 में 'संवेदना' नाम की एलबम के रुप में सामने आया.

अटल बिहारी वाजपेयी एक कमाल के वक्ता रहे हैं और उनकी भाषा शैली में कविता इस कदर रची बसी थी की वो सुनने वालों को मंत्रमुग्ध कर लेते थे.

 

अटल बिहारी वाजपेयी के “जीवन से मृत्यु की कहानी” कहती इस कविता के कुछ अंश:

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