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Article : Current Affairs 6 aug. 2018.
Updated at : Fri, 07 September, 2018 , 11:45:31 AM ( IST )

बीईएल को नेवी के लिए मिसाइल बनाने का अनुबंध प्राप्त हुआ


फोटो स्रोत: डिफेंस एविएशन पोस्ट

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को 05 सितंबर 2018 को भारतीय नौसेना के लिए लम्बी दूरी की जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल (एलआरएसएएम) बनाने हेतु अनुबंध प्राप्त हुआ है.
बीईएल के साथ किये गये इस समझौते की लागत 9,200 करोड़ रुपये है. बीईएल का यह समझौता मैज़गौन डॉक लिमिटेड (एमडीएल) एवं गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजिनियर्स (जीआरएसई) के साथ हुआ है.
समझौते के मुख्य बिंदु

•    भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) द्वारा बनाई जाने वाली मिसाइलें (एलआरएसएएम) सात नौसेनिक जहाजों पर तैनात की जायेंगी.
•    बीईएल द्वारा किया गया यह अब तक का सबसे बड़ा समझौता है.
•    आकाश मिसाइल के प्रमुख निर्माता सहयोगी रही बीईएल ने टर्नकी मिसाइल सिस्टम में अपनी क्षमता दिखाई है.
•    बीईएल इस समझौते के साथ ही थल सेना के लिए क्विक रिस्पांस सिस्टम मिसाइल (क्यूआरएसएएम), मीडियम रेंज सरफेस मिसाइल (एमआरएसएएम) वायु सेना के लिए तथा लॉन्ग रेंज सरफेस तो एयर मिसाइल (एलआरएसएएम) नौसेना के लिए निर्माण करेगी.
एलआरएसएएम मिसाइल प्रणाली के बारे में
•    भारत की सबसे पहले एलआरएसएएम प्रणाली को डीआरडीओ और इजराइल के आइएआइ के मध्य एक संयुक्त उद्यम के माध्यम से विकसित किया गया.
•    एलआरएसएएम हवाई लक्ष्यों और मिसाइलों के खिलाफ एक उन्नत मिसाइल रक्षा कवच है.
•    यह हवा और सतह की निगरानी, खतरे की चेतावनी और आग पर नियंत्रण की पूर्ण क्षमता रखती है.
•    मिसाइलों के उड़ान की गति को आईटीआर में स्थापित राडारों और विद्युत ऑप्टिकल प्रणालियों द्वारा पता लगाकर नज़र रखी जा सकती है.
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड
भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अधीन एक सैन्य एवं नागरिक उपकरण एवं संयंत्र निर्माण ईकाई है. भारत सरकार द्वारा सन 1954 में सैन्य क्षेत्र की विशेष चुनौतीपूर्ण आवश्यकताऐं पूरी करने हेतु रक्षा मन्त्रालय के अधीन इसकी स्थापना की गई थी. इलेक्ट्रानिक उपकरण व प्रणालियों का विकास तथा उत्पादन देश में ही करने के उद्देश्य से इसका पहला कारखाना बंगलुरू में लगाया गया था, किन्तु आज यह अपनी नौ उत्पादन इकाईयों, कई क्षेत्रीय कार्यालय तथा अनुसन्धान व विकास प्रयोगशालाओं से युक्त सार्वजनिक क्षेत्र का एक विशाल उपक्रम है, जिसे अपने व्यावसायिक प्रदर्शन के फलस्वरूप भारत सरकार से नवरत्न उद्योग का स्तर प्राप्त हुआ है.

भारत और फ्रांस ने गगनयान मिशन के लिए समझौता किया


प्रतीकात्मक फोटो

भारत और फ्रांस ने अंतरिक्ष तकनीक क्षेत्र में सहयोग बढ़ाते हुए 06 सितंबर 2018 को गगनयान पर साथ मिलकर काम करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये. इस समझौते के पश्चात् भारत और फ्रांस ने गगनयान के लिए एक कार्यकारी समूह की घोषणा भी की.
फ्रांसीसी अंतरिक्ष एजेंसी के अध्यक्ष जीन येव्स ली गॉल द्वारा बेंगलुरु स्पेस एक्सपो के छठे संस्करण के दौरान घोषणा की गयी. भारत की 2022 से पहले अंतरिक्ष में तीन मनुष्यों को भेजने की योजना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर इसरो के पहले मानवयान मिशन की घोषणा की थी.
भारत-फ्रांस गगनयान समझौते की विशेषताएं
•    इसरो और फ्रांस की अंतरिक्ष एजेंसी सीएनइएस अंतरिक्ष औषधि, अंतरिक्ष यात्रियों के स्वास्थ्य की निगरानी करने, जीवन रक्षा मुहैया कराने, विकिरणों से रक्षा, अंतरिक्ष के मलबे से रक्षा और निजी स्वच्छता व्यवस्था के क्षेत्रों में संयुक्त रूप से अपनी विशेषज्ञता मुहैया कराएंगे.
•    दोनों एजेंसियां मिलकर इसरो के अन्तरिक्ष यात्रियों को बेहद कम गुरुत्वाकर्षण पर प्रयोग करेंगे. 
•    दोनों देशों ने मंगल ग्रह, शुक्र और क्षुद्र ग्रह पर भी काम करने की योजना के बारे में विचार साझा किये हैं.
•    फ्रांस के पास अंतरिक्ष अस्पताल जैसी सुविधा में मौजूद है तथा वह भारत के साथ यह जानकारी साझा करने के लिए तैयार है.
•    गौरतलब है कि फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुअल मैक्रों मार्च 2018 में दिल्ली की यात्रा पर आए थे और भारत तथा फ्रांस ने अंतरिक्ष सहयोग पर संयुक्त दृष्टिपत्र (विजन) जारी किया था.

गगनयान मिशन के उद्देश्य

  • देश में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के स्तर में वृद्धि.
  • एक राष्ट्रीय परियोजना जिसमें कई संस्थान, अकादमिक और उद्योग शामिल हैं.  
  • औद्योगिक विकास में सुधार.  
  • युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत.   
  • सामाजिक लाभ के लिए प्रौद्योगिकी का विकास.  
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग में सुधार

गगनयान के बारे में जानकारी
भारत की वर्ष 2022 से पहले, तीन मनुष्यों को अंतरिक्ष में भेजने की योजना है जिसे गगनयान नाम दिया गया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का मिशन महत्वपूर्ण है क्योंकि यह रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत को दुनिया के चौथे देश की फेहरिस्त में शामिल करेगा जिसने कोई मानवयुक्त यान अंतरिक्ष में भेजा है.

भारतीय लड़ाकू विमान तेजस ने पहली बार हवा में ईंधन भरने का सफल परीक्षण किया

भारतीय वायुसेना (आईएएफ) ने 05 सितम्बर 2018 को बताया कि उसने स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू विमान ‘तेजस' में पहली बार सफलतापूर्वक हवा में ही ईंधन भरा.

भारतीय वायुसेना (आईएएफ) वर्तमान में एक प्रारंभिक ऑपरेटिंग क्लीयरेंस (आईओसी) मानक में निर्मित नौ तेजस लड़ाकू विमानों का संचालन करती है. इन जेटों को तमिलनाडु के सुलूर वायुसेना स्टेशन पर आधारित नंबर 45 स्क्वाड्रन, फ्लाइंग डैगर्स द्वारा उड़ाया जा रहा है.

मुख्य तथ्य:

•    रूस निर्मित आईएल-78 एमकेआई टैंकर ने तेजस एमके आई के एक विमान में ईंधन भरा. इस दौरान एक अन्य तेजस विमान इस पूरी प्रक्रिया पर कड़ी नजर रखे हुए था.

•    ये टैंकर आगरा में वायुसेना अड्डे से भेजा गया था, जबकि लड़ाकू विमान ने ग्वालियर से उड़ान भरा था. विशेष रूप से निर्मित तेजस विमान ने टैंकर के साथ ड्राई कॉन्टैक्ट सहित कई परीक्षणों को पूरा किया.

•    इस मिशन के दौरान तेजस को ग्रुप कैप्टन जोशी और आईएल-78 टैंकर को ग्रुप कैप्टन आर अरविंद उडा रहे थे.

•    परीक्षण उड़ान से पहले सभी तरह के जमीनी परीक्षण भी किये गये थे. इस सफल परीक्षण से स्वदेशी तेजस की ताकत बढी है और यह लंबी अवधि के मिशन को भी बखूबी अंजाम देने में सक्षम बन गया है.

•    यह परीक्षण तेजस के लिए‘फाइनल ऑपरेशनल क्लियरेंस’का मार्ग प्रशस्त करेगा.

•    ईंधन को टैंकर से लड़ाकू में स्थानांतरित करने के लिए 'वेट' परीक्षणों सहित इस क्षमता को मान्य करने के लिए नौ और परीक्षण आयोजित किए जाएंगे.

•    तेजस में एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग की जांच अंतरराष्ट्रीय एयरोस्पेस सिस्टम प्रमुख कोबम द्वारा डिजाइन की गई है.

एलसीए तेजस:

एलसीए तेजस भारत द्वारा विकसित किया जा रहा एक हल्का और कई तरह की भूमिकाओं वाला जेट लड़ाकू विमान है. यह हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड (एचएएल) द्वारा विकसित एक सीट और एक जेट इंजन वाला विमान है. अनेक भूमिकाओं को निभाने में सक्षम एक हल्का युद्धक विमान है.

यह बिना पूँछ का, कम्पाउण्ड-डेल्टा पंख वाला विमान है. विमान का आधिकारिक नाम तेजस 4 मई 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने रखा था.

यह विमान पुराने पड़ रहे मिग-21 का स्थान लेगा. एलसीए कार्यक्रम 1983 में दो प्राथमिक उद्देश्यों के लिए शुरू किया गया था. एलसीए के कार्यक्रम का अन्य मुख्य उद्देश्य भारत के घरेलू एयरोस्पेस उद्योग की चौतरफा उन्नति के वाहक के रूप में कार्य करना था.

तेजस की विशेषताएं:
•  लड़ाकू विमान तेजस 50 हजार फीट की ऊंचाई पर उड़ान भर सकता है.

•  विमान तेजस में हवा से हवा में मार करने वाली डर्बी मिसाइल समाहित की गयी है.

•  तेजस में जमीन पर निशाना लगाने हेतु आधुनिक लेजर गाइडेड बम लगे हुए हैं.

•  ताकत के मामले में यह पुराने मिग-21 से कही अधिक दमदार है और इसकी तुलना मिराज-2000 से की जा सकती है.

•  इसमें सेंसर तरंग रडार लगाया गया है जो दुश्मन के विमान या जमीन से हवा में दागी गई मिसाइल के तेजस के पास आने की सूचना देता है




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